अक्सर हम सेविंग्स अकाउंट खोलते वक्त यह सोचते हैं कि बैंक में पैसे सुरक्षित रहेंगे और हमें ज्यादा नियम-कायदों की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन हाल ही में ICICI Bank ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने कई लोगों का ध्यान खींचा है। अब नए शहरी ग्राहकों के लिए न्यूनतम बैलेंस की शर्त बढ़ाकर ₹50,000 कर दी गई है। अगर आपका मंथली एवरेज बैलेंस इससे कम हुआ, तो पेनाल्टी लगेगी। ICICI Bank Raises Minimum Balance to ₹50000
ये बदलाव खास क्यों है? ICICI Bank Raises Minimum Balance to ₹50000
मिनिमम बैलेंस की शर्त हमेशा से रही है, लेकिन ICICI Bank का इसे इतनी बड़ी रकम तक बढ़ाना थोड़ा चौंकाने वाला है। एनालिस्ट्स का मानना है कि बैंक अब प्रीमियम ग्राहकों को टारगेट कर रहा है ऐसे लोग जिनकी इनकम ज्यादा है, जो ज्यादा खर्च करते हैं और बैंक के साथ लंबा रिश्ता रखते हैं।
बैंकिंग बिज़नेस के नजरिए से ये समझदारी है। ज्यादा बैलेंस रखने वाले ग्राहक आमतौर पर क्रेडिट रिस्क के मामले में सुरक्षित माने जाते हैं। जिनके अकाउंट में पहले से अच्छा पैसा होता है, उन्हें लोन और क्रेडिट कार्ड देने में बैंक को ज्यादा दिक्कत नहीं होती।
इसके पीछे की बड़ी तस्वीर
ये बदलाव अकेले में नहीं हो रहा। इंडियन इकोनॉमी में इन दिनों K-शेप्ड रिकवरी देखने को मिल रही है—यानी अमीर तबके की आय और खर्च तेज़ी से बढ़ रहा है, जबकि बाकी लोग धीरे-धीरे उभर रहे हैं। प्रीमियम प्रोडक्ट्स—चाहे वो स्मार्टफोन हों या बैंकिंग सर्विसेज—की मांग बेसिक प्रोडक्ट्स से ज्यादा बढ़ रही है।
बैंक भी इसी ट्रेंड को अपनाते हुए “प्रीमियमाइजेशन” की ओर बढ़ रहे हैं।
किन लोगों पर लागू होगा नया नियम?
ये नियम सिर्फ उन ग्राहकों पर लागू होगा, जो 1 अगस्त या उसके बाद ICICI Bank में नया सेविंग्स अकाउंट खोलेंगे। पुराने ग्राहकों के लिए न्यूनतम बैलेंस की मौजूदा शर्तें बरकरार रहेंगी।
तो अगर आपका अकाउंट पहले से है, आपके लिए फिलहाल कुछ नहीं बदला है। लेकिन साफ है कि बैंक अब आगे ऐसे ग्राहकों को प्राथमिकता देगा जो ज्यादा बैलेंस रखते हैं।
क्या बाकी बैंक भी ऐसा कर सकते हैं?
अभी साफ तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। मिनिमम बैलेंस बहुत बढ़ाने से डिपॉजिट ग्रोथ धीमी पड़ सकती है—और बैंक पहले से CASA (करंट अकाउंट-सेविंग्स अकाउंट) डिपॉजिट की कमजोर ग्रोथ झेल रहे हैं।
ICICI Bank के पास इतनी ब्रांड स्ट्रेंथ और ग्राहक आधार है कि वो इस बदलाव का असर झेल सकता है। लेकिन छोटे बैंकों के लिए ये कदम उठाना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब उनके नेट इंटरेस्ट मार्जिन पर पहले से दबाव है।